Shri Ram katha
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Sutradhar

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Sutradhar brings to you ShriRam Katha based on the Ramayana composed by Maharshi Valmiki. We will cover stories from Shriram's birth till his killing of Ravan to rescue his beloved wife Sita. The series will start from Bal Kand and will end with Lanka Kand of Ramayan. Thanks to Akshaya Watve and Madhavi Todkar for their efforts in making this project happen.

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रावण वध
OCT 5, 2022
रावण वध
अपने पुत्रों, भाइयों और सभी प्रमुख महारथियों की मृत्यु के पश्चात रावण ने अत्यंत क्रोधित होकर वानर सेना पर आक्रमण कर उनके मध्य हाहाकार मचा दिया। रावण ने तमस अस्त्र का प्रयोग कर अनेक वानरों को धराशायी कर दिया। श्रीराम और लक्ष्मण ने वानरों को इस प्रकार गिरते हुए देखा और रावण का सामना करने का निश्चय किया। लक्ष्मण ने अपने बाणों से रावण पर प्रहार किये। दोनों के बीच घमासान युद्ध छिड़ गया। लक्ष्मण ने अपने बाणों से रावण के सारथी को मारकर रावण का धनुष तोड़ दिया। विभीषण ने अपने मुग्दर से रावण के रथ के घोड़ों को मार गिराया। इससे क्रोधित होकर रावण के एक भाला उठाया और अपने भाई पर प्रहार किया। लक्ष्मण ने अपने तीरों से उस भाले को तीन हिस्सों में काटकर गिरा दिया। रावण ने एक और भाला उठाकर फिर से विभीषण की ओर निशाना साधा। विभीषण के प्राण खतरे में देखकर लक्ष्मण ने रावण पर लगातार तीरों से प्रहार किये। रावण ने विभीषण को छोड़कर वह भाला जोर से लक्ष्मण जी की ओर फेंका। भाला लक्ष्मण के वक्षस्थल पर लगा और उसके प्रहार से वो मूर्छित हो गए। श्रीराम ने लक्ष्मण को मूर्छित होते देखा तो तुरंत ही उनके पास आए और अपने हाथों से लक्ष्मण जी की छाती पर लगा हुआ भाला बाहर निकाला। हनुमान जी और सुग्रीव को लक्ष्मण की सुरक्षा में नियुक्त कर वो रावण का सामना करने लगे। अपने रथ से विहीन रावण श्रीराम के बाणों का सामना नहीं कर सका और लंका वापस लौट गया। रावण के युद्धस्थल से जाने के बा श्रीराम लक्ष्मण जी के पास आए और उनका सर अपनी गोद में रखकर विलाप करने लगे। श्रीराम को विलाप करता देखकर वानरों के वैद्य और तारा के पिता सुषेण ने उनको सांत्वना देते हुए कहा की लक्ष्मण जी सिर्फ मूर्छित हुए हैं। उन्होंने हनुमानजी से जांबवान के बताए हुए द्रोणगिरि पर्वत पर जाकर वहाँ से सभी घाव भरने वाली विशल्यकर्णी और जीवनदायिनी संजीवनी, सौवर्णकर्णी और संधानकर्णी नामक जड़ी बूटियाँ लाने को कहा। हनुमानजी मन की गति से द्रोणगिरि पर्वत पहुँचे और सही जड़ी-बूटी ना पहचानने के कारण पूरा द्रोणगिरि पर्वत ही उठाकर लंका ले आए। सुषेण ने हनुमानजी द्वारा लाई हुई बूटियों से औषध तैयार की और लक्ष्मण जी को सुँघाई। औषध की गंध से लक्ष्मण जी की मूर्छा टूटी और उनके घाव भी भर गए।  रावण जब पुनः अपने रथ पर सवार युद्ध में उतरा तब इन्द्रदेव ने अपने सारथी मताली के साथ अपना रथ श्रीरामचन्द्र जी के लिए भेजा। मताली ने श्रीराम से देवराज इन्द्र के रथ पर सवार होकर रावण का सामना करने को कहा।  इन्द्र के रथ पर आरूढ़ श्रीराम और दशानन के बीच भयानक द्वन्द्व छिड़ गया। रावण ने श्रीराम पर नाग-अस्त्र से प्रहार किया जिससे उसके बाण भयानक नागों के रूप में परिवर्तित होकर श्रीराम की ओर बढ़े। उसका प्रतिकार करने के लिए श्रीराम ने गरुड़-अस्त्र का प्रयोग किया, जिसने सभी नागों को नष्ट कर दिया। रावण ने श्रीराम पर भाले से प्रहार किया जिसे श्रीराम ने मताली के साथ लाए हुए इन्द्र के अस्त्र से नष्ट कर दिया। श्रीराम ने अनेक बाणों से रावण पर प्रहार किये और उसके शरीर के अनेक अंगों को अपने बाणों से बींध दिया। श्रीराम भी रावण के बाणों से प्रहार से रक्त-रंजित हो चुके थे।  रावण को श्रीराम का सामना करने में असफल होते देख उसके सारथी ने रथ को युद्धस्थल से दूर ले जाने की सोची। उसके रथ घुमाते ही रावण ने उसे फटकार लगाते हुए रथ को पुनः युद्धस्थल की ओर ले जाने को कहा। श्रीराम ने रावण का रथ वापस आते हुए देखकर मताली से कहा कि लगता है रक्षसराज ने आज युद्ध में प्राण त्यागने का निश्चय कर लिया है। उन्होंने मताली को बिना किसी भय और व्यवधान के अपना रथ रावण की ओर ले जाने को कहा।  दोनों क बीच भयंकर युद्ध छिड़ गया। श्रीराम को अपनी विजय का निश्चय था और रावण को उसकी मृत्यु साक्षात दिख रही थी। दशानन ने राघव के रथ पर प्रहार किया परंतु उसके तीर इन्द्र के दैवी रथ से टकराकर गिर गए। श्रीराम ने रावण के रथ की ध्वजा को अपने बाणों से ध्वस्त कर दिया। रावण ने क्रोधित होकर श्रीराम के रथ के घोड़ों पर अनेक बाण चलाए परंतु वो दैवी घोड़े रावण के बाणों से भयभीत नहीं हुए। रावण ने श्रीराम पर अनेक मायावी अस्त्रों से प्रहार किया जिन्हे उन्होंने अपने दैवी अस्त्रों से काट दिया। रावण ने मताली पर कई बाण चलाए जिससे श्रीराम को अत्यंत क्रोध आया और  उन्होंने क्षुर नामक अस्त्र से रावण का सर धड़ से अलग कर दिया, परंतु उस कैट हुए सर के स्थान पर एक और सर प्रकट हो गया। श्रीराम ने फिर से दशानन का सर काट दिया और उसकी ग्रीवा से एक और सर निकल आया।  इस प्रकार रावण का अन्त होते नहीं प्रतीत हो रहा था, तब मताली ने श्रीराम से कहा कि रावण का अन्त करने के लिए ब्रह्मदेव के अस्त्र का प्रयोग करें। मताली के ऐसा कहने पर श्रीराम ने अगस्त्य ऋषि द्वारा उनको दिया हुआ ब्रह्मदेव द्वारा इन्द्र के लिए बनाया हुआ ब्रह्मास्त्र का आव्हान किया। श्रीराम ने अपने धनुष की प्रत्यंचा चढ़ाकर मंत्रोच्चारण करते हुए पूरी शक्ति के साथ रावण पर ब्रह्मास्त्र से प्रहार किया। ब्रह्मास्त्र के प्रहार से रावण का हृदय छलनी हो गया और उसके प्राण पखेरू उड़ गए।  रावण के प्राण निकलते ही सभी राक्षस डरकर इधर-उधर भागने लगे और वानर सेना ने श्रीराम का जयघोष किया। रावण के प्रकोप से प्रताड़ित देवताओं, गन्धर्वों, ऋषियों इत्यादि ने हर्ष के साथ श्रीराम की जय-जयकार की।  आज भी समस्त भारतवर्ष में श्रीराम द्वारा रावण वध की वर्षगांठ धर्म की अधर्म पर विजय के रूप में मनायी जाती है। प्रतिवर्ष आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को दशहरा या विजय दशमी के रूप में मनाया जाता है। Learn more about your ad choices. Visit megaphone.fm/adchoices
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8 MIN
कुम्भ-निकुम्भ वध
OCT 4, 2022
कुम्भ-निकुम्भ वध
श्रीराम और लक्ष्मण के सचेत होने के बाद सुग्रीव ने वानर सेना को लंका नगरी में आग लगाने की आज्ञा दी। सुग्रीव की आज्ञा पाकर वानर सेना ने अपने हाथों में मशालें लेकर लंका नगरी में आग लगाना शुरू कर दिया। सभी नगर वासी राक्षसों में हाहाकार मच गया। तब रावण ने कुंभकर्ण के पुत्रों कुम्भ और निकुंभ के नेतृत्व में राक्षस सेना को वानर सेना से युद्ध करने भेजा। युद्ध प्रारम्भ होते ही महाबली अंगद ने कंपन नामक राक्षस को एक चट्टान के प्रहार से मार गिराया। यह देखकर कुम्भ ने अपने बाणों से वानर सेना पर आक्रमण कर दिया। कुम्भ के बाण लगने से द्विविदा आहत होकर गिर गया। अपने भाई को इस प्रकार आहत देखकर मैंदा ने कुम्भ पर आक्रमण किया, परंतु वह भी कुम्भ के बाणों से घायल होकर मूर्छित हो गया। अपने मामाओं को इस प्रकार पराजित होता देखकर महाबली अंगद ने कुम्भ को ललकारा। अंगद और कुम्भ के बीच घमासान युद्ध हुआ और अंततः अंगद कुम्भ के बाणों के प्रहार से आहत होकर मूर्छित हो गए। जब श्रीराम को अंगद के मूर्छित होने का समाचार मिला तो उन्होंने महाबली जांबवान के नेतृत्व में वानर सेना को कुम्भ का सामना करने के लिए भेजा। जांबवान, सुषेण और वेगदर्शी ने कुम्भ पर चट्टानों और वृक्षों से आक्रमण किया परंतु कुम्भ ने अपने तीरों से उनके प्रहारों को निष्फल कर दिया। तब वानरराज सुग्रीव ने अनेक वृक्षों को कुम्भ की ओर फेंका, जिन्हे कुम्भ ने अपने तीरों से नष्ट कर दिया। सुग्रीव ने क्रोध में आकर कुम्भ का धनुष तोड़ दिया। धनुष टूट जाने पर कुम्भ सुग्रीव की ओर लपका और अपनी मुष्टिका से कई बार सुग्रीव की छाती पर प्रहार किये। सुग्रीव ने भी कुम्भ की छाती पर अनेक बार मुष्टिका से प्रहार किये। कुम्भ एक भीषण गर्जना के साथ भूमि पर गिर गया और उसके प्राण निकल गए। अपने भाई को धराशायी होते देखकर निकुम्भ क्रोध से भरकर एक विशाल मुग्दर लेकर वानर सेना पर टूट पड़ा। पवनपुत्र हनुमान को अपने सामने देखकर उसने अपने मुग्दर से उनके वक्ष पर प्रहार किया। बजरंगबली के वक्ष से टकराकर मुग्दर सौ टुकड़ों में टूटकर बिखर गया। दोनों महाबालशाली योद्धाओं में बीच मल्लयुद्ध छिड़ गया। अंततः बजरंगबली ने निकुम्भ की गर्दन तोड़कर उसे यमलोक भेज दिया। Learn more about your ad choices. Visit megaphone.fm/adchoices
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3 MIN
अतिकाया वध
OCT 3, 2022
अतिकाया वध
अपने भाइयों की मृत्यु से रावण की पत्नी धन्यमलिनी का पुत्र अतिकाया, जिसे ब्रह्मदेव से देव और दानवों द्वारा ना मारे जा सकने का वरदान प्राप्त था, क्रोध से भर गया और उसने अपने रथ पर सवार होकर युद्धभूमि में प्रवेश किया। उसके धनुष की टंकार से चारों ओर कोलाहल मच गया। कुमुद, द्विविदा, मैंदा, नील और शरभ ने वृक्षों और चट्टानों से उस पर एक साथ प्रहार किया, जिन्हें अतिकाया ने अपने बाणों से ध्वस्त कर दिया। इस प्रकार जो भी उसके सामने आता उस पर प्रहार करते हुए वह श्रीराम के समक्ष पहुंचा और उन्हें युद्ध के लिए ललकारा। उसकी ललकार का उत्तर लक्ष्मण ने दिया और अपना धनुष हाथ में लेकर उसके सामने आ खड़े हुए। अतिकाया और लक्ष्मण दोनों धनुर्विद्या में निपुण थे। उन दोनों के बीच भयानक द्वन्द्व छिड़ गया। लक्ष्मणजी ने अतिकाया पर आग्नेयास्त्र से प्रहार किया जिसे देखकर अतिकाया ने सूर्यास्त्र से प्रहार किया और दोनों अस्त्र हवा में एक-दूसरे से टकराकर नष्ट हो गए। अतिकाया ने ऐशिका अस्त्र का आव्हान किया, जिसका सामना लक्ष्मण ने ऐंद्रास्त्र से किया। अतिकाया के यमयास्त्र को लक्ष्मण ने वायव्यास्त्र से नष्ट कर दिया। दोनों के बीच बाणों का आदान-प्रदान चलता रहा और दोनों ही योद्धा हारते हुए नहीं दिख रहे थे। तब वायुदेव ने लक्ष्मण जी के कान में कहा कि इसकी शक्तियां ब्रह्मदेव के वरदान से हैं, और इसका अन्त भी ब्रह्मदेव के अस्त्र से ही संभव है। वायुदेव की बात मानकर लक्ष्मणजी ने ब्रह्मास्त्र का आव्हान किया और अतिकाया पर प्रहार किया। अतिकाया ने अपनी ओर आते हुए ब्रह्मास्त्र को रोकने हेतु उस पर कई बाणों से प्रहार किया, परंतु अतिकाया के बाणों का ब्रह्मास्त्र पर कोई असर नहीं हुआ। अतिकाया ने भाले, फरसे, हथौड़े, तलवार इत्यादि से ब्रह्मास्त्र को रोकने का प्रयास किया परंतु वह ब्रह्मदेव के अस्त्र को नहीं रोक पाया और ब्रह्मास्त्र के प्रहार से उसका सर धड़ से अलग होकर जमीन पर गिर गया। इस प्रकार लक्ष्मणजी ने रावण के प्रतापी पुत्र विशालकाय अतिकाया का वध कर वानरसेना और देवगणों में खुशी का संचार किया।   Learn more about your ad choices. Visit megaphone.fm/adchoices
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3 MIN
त्रिषिरा वध
OCT 2, 2022
त्रिषिरा वध
देवांतक की मृत्यु से त्रिषिरा ने क्रोध में भरकर नील पर तीरों की वर्षा कर दी। नील ने अपना आकार बढ़ाकर उन तीरों का बड़ी ही वीरता के साथ सामना किया। जैसे ही नील उन तीरों के प्रभाव से मुक्त हुए उन्होंने एक विशाल चट्टान से महोदर और उसके हाथी सुदर्शन को धराशायी कर दिया। महोदर के धराशायी होने पर त्रिषिरा ने हनुमान जी पर अपने बाणों से आक्रमण कर दिया। हनुमान जी ने क्रोध में आकर त्रिषिरा के रथ के घोड़ों को मार गिराया। इस प्रकार रथ से विहीन हो जाने पर त्रिषिरा ने एक भाले से हनुमान जी पर प्रहार किया। हनुमान जी ने उसे हवा में ही पकड़कर अपनी जांघों पर रखकर तोड़ दिया। उसके बाद त्रिषिरा ने एक तलवार से हनुमानजी पर प्रहार किया। तलवार के प्रहार से बचते हुए बजरंगबली ने अपनी हथेली से त्रिषिरा की छाती पर जोर से वार किया, जिससे उसके हाथ से तलवार छूट गई और वो दूर जा गिरा। जैसे ही त्रिषिरा ने होश सम्हाला और हनुमानजी पर अपनी मुष्टिका से प्रहार करने के लिए लपका पवनपुत्र ने अपने एक हाथ से उसका मुकुट पकड़कर उसकी ही तलवार से उसका सर धड़ से अलग कर दिया।   Learn more about your ad choices. Visit megaphone.fm/adchoices
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2 MIN