संपूर्ण चैतन्य लीला | श्रील गौर कृष्ण दास गोस्वामी | 11. चैतन्य-भगवतम (आदि 14-16) | युवा लीलाएँ यात्रा – गया

FEB 13, 202572 MIN
इन सर्विस ओफ़ श्रीमद्भागवतम™

संपूर्ण चैतन्य लीला | श्रील गौर कृष्ण दास गोस्वामी | 11. चैतन्य-भगवतम (आदि 14-16) | युवा लीलाएँ यात्रा – गया

FEB 13, 202572 MIN

Description

<p><strong>श्री चैतन्य महाप्रभु की वृंदावन यात्रा</strong> ✨🙏</p><p><strong>भक्तिविनोद ठाकुर</strong> ने अपनी <strong>अमृत-प्रवाह-भाष्य</strong> में उल्लेख किया है कि श्री चैतन्य महाप्रभु ने <strong>जगन्नाथ रथयात्रा</strong> में भाग लेने के बाद <strong>वृंदावन यात्रा</strong> का निश्चय किया। श्री <strong>रामानंद राय</strong> और <strong>स्वरूप दामोदर गोस्वामी</strong> ने उनके साथ जाने के लिए <strong>बलभद्र भट्टाचार्य</strong> नामक एक ब्राह्मण को चुना।</p><p>🌿 <strong>झारखंड के जंगल में हरि-नाम संकीर्तन</strong> महाप्रभु ने <strong>कटक (उड़ीसा)</strong> से आगे बढ़ते हुए घने जंगलों में प्रवेश किया। वहाँ उन्होंने <strong>शेरों, हाथियों और अन्य जंगली जानवरों</strong> को भी <strong>हरे कृष्ण महामंत्र</strong> का संकीर्तन कराया! 🦁🐘</p><p>⚡ <strong>निर्वाह एवं साधना</strong> जहाँ कहीं कोई गाँव मिलता, बलभद्र भट्टाचार्य भिक्षा मांगकर चावल और सब्जियाँ लाते। यदि कोई गाँव न होता, तो जंगल से पालक आदि एकत्र कर पकाते। महाप्रभु इस सरल जीवन से अत्यंत प्रसन्न होते थे।</p><p>🌊 <strong>वाराणसी में प्रवेश और मणिकर्णिका घाट स्नान</strong> झारखंड के जंगल पार करने के बाद महाप्रभु <strong>वाराणसी</strong> पहुंचे और <strong>मणिकर्णिका घाट</strong> पर स्नान किया। वहाँ <strong>तपन मिश्र</strong> और <strong>वैद्य चंद्रशेखर</strong> ने उनकी सेवा की। इस दौरान, एक <strong>महाराष्ट्रीयन ब्राह्मण</strong> ने उन्हें बताया कि <strong>प्रकाशानंद सरस्वती</strong> और अन्य मायावादी सन्यासी उनकी निंदा कर रहे हैं। इस पर महाप्रभु ने समझाया कि जो लोग कृष्ण नाम का उच्चारण नहीं करते, वे अपराधी हैं और उनसे संग नहीं करना चाहिए।</p><p>🌸 <strong>प्रयाग और मथुरा की यात्रा</strong> महाप्रभु <strong>प्रयाग और मथुरा</strong> पहुंचे, जहाँ उन्होंने <strong>माधवेंद्र पुरी के शिष्य, एक सानोडिया ब्राह्मण</strong> के घर प्रसाद ग्रहण कर उन्हें आशीर्वाद दिया।</p><p>🌿 <strong>वृंदावन की दिव्य अनुभूति</strong> जब महाप्रभु वृंदावन के <strong>बारह वनों</strong> में पहुंचे, तो वे <strong>परम भक्ति और प्रेम</strong> में मग्न हो गए। वहाँ उन्होंने <strong>तोतों और अन्य पक्षियों</strong> के मधुर स्वर सुने और उनकी भक्ति और प्रेम और भी बढ़ गया।</p><p>🔱 <strong>यह यात्रा केवल एक भौगोलिक यात्रा नहीं थी, बल्कि श्री चैतन्य महाप्रभु के प्रेम और भक्ति की अद्भुत लीलाओं का जीवंत प्रमाण थी।</strong> 🙏✨</p>